संतुष्टता

#akshay_speaks मुझे अक्सर उन लोगो को देख कर बहुत आश्चर्य होता है, जो छोटासा यश प्राप्त करके संतुष्ट हो जाते है। "भगवान ने जितना दिया है, उतने में ही समाधान मानना चाहिये!" ऐसी कुछ तत्वज्ञान को शिरोधार्य मानकर वे स्वयं ही अपनी क्रयशक्ती पर अन्याय किये जाते है। कुछ समय पहिले हम एक महाशय से मिला थे, वे राज्य शासन की किसी सेवा में कार्यरत थे। एक हुनहार तथा कल्पक कर्मचारी ऐसी उनकी ख्याती थी, किंतु जब भी हमने उनसे उच्च श्रेणी में जाने के लिये आवश्यक परीक्षाओ के विषय में बाते की, वे उपहासपूर्वक हंसकर उस विषय को बदल देते थे। उनका मासिक वेतन सिर्फ २०,०००/- तक था किंतु वे ऐसे बर्तव करते थे की अलेक्सझंदर के बाद वे ही एकमात्र जगजेत्ता है। दरसल उनकी क्षमता काफी उच्च है पर क्या करे, वे अपनी वर्तमान परिस्थिती से ही खुश है। और एक किस्सा , यही अल्पसंतुष्टी का! हमारे मित्रो में एक व्यक्ती जिसने महत प्रयासो के उपरांत ITI पास करके कही एक छोटासा व्यवसाय शुरु किया, हम मित्रोने उसे बहुत सलाह दी की भाई ITI हो गया अब Diploma कर लो, तुम्हारे व्यवसाय की वृद्धी के लिये वह काफी हद तक फायदेमंद हो सकती...