संतुष्टता

#akshay_speaks
मुझे अक्सर उन लोगो को देख कर बहुत आश्चर्य होता है, जो छोटासा यश प्राप्त करके संतुष्ट हो जाते है। "भगवान ने जितना दिया है, उतने में ही समाधान मानना चाहिये!" ऐसी कुछ तत्वज्ञान को शिरोधार्य मानकर वे स्वयं ही अपनी क्रयशक्ती पर अन्याय किये जाते है।
कुछ समय पहिले हम एक महाशय से मिला थे, वे राज्य शासन की किसी सेवा में कार्यरत थे। एक हुनहार तथा कल्पक कर्मचारी ऐसी उनकी ख्याती थी, किंतु जब भी हमने उनसे उच्च श्रेणी में जाने के लिये आवश्यक परीक्षाओ के विषय में बाते की, वे  उपहासपूर्वक हंसकर उस विषय को बदल देते थे। उनका मासिक वेतन सिर्फ २०,०००/- तक था किंतु वे ऐसे बर्तव करते थे की अलेक्सझंदर के बाद वे ही एकमात्र जगजेत्ता है। दरसल उनकी क्षमता काफी उच्च है पर क्या करे, वे अपनी वर्तमान परिस्थिती से ही खुश है।
और एक किस्सा , यही अल्पसंतुष्टी का!
हमारे मित्रो में एक व्यक्ती जिसने महत प्रयासो के उपरांत ITI पास करके कही एक छोटासा व्यवसाय शुरु किया, हम मित्रोने उसे बहुत सलाह दी की भाई ITI हो गया अब Diploma कर लो, तुम्हारे व्यवसाय की वृद्धी के लिये वह काफी हद तक फायदेमंद हो सकती है। किंतु नही, हाथो में पैसे आने के बाद उसने अपनी शिक्षा भी छोड दी, और व्यवसाय के विस्तार का भी कोई नाम नही ले रहा था। कुछ समय बाद वही हमारे मित्र विवाह हेतू वधूपरीक्षण के लिये चल दिये, खुद को बडे उद्योगपती समज कर उसने ये ठाण लिया के विवाह करुंगा तो किसी इंजिनियर कन्या के साथ! और संयोग से एक कन्या जो इंजिनीअरिंग के अंतिम वर्ष में थी, उसके बारे में इनको पता चला! और ये महाशय अपने माता पिता के साथ बडे आत्मविश्वास से उस कन्या के घर जा कर खडे रह गये, के मुझे आपकी इंजिनियर बेटी से शादी करनी है। अचानक से आये इन अतिथियो को देख कर उस कन्या के पिता पलभर के लिये चकित रह गये किंतु तुरंत खुद को संभल कर उन्होने इन लोगोका आदरातिथ्य किया, और कुछ चर्चा के उपरांत हमारे मित्रसे पुछा कें बेटे कमाते कितना हो?
ये महाशय बडे गर्व से कहे "दो लोग पेट भर कर खाये इतना कमाता हूं। दिन के ३०० रुपये तो कही नही गये!" अब उसे कौन समजाये कि भाई आज ३०० रुपये तो युंही खर्च हो जाते है।
मैं तो कहुंगा भाई जब तक आपका शरीर आपका हुनर आपको साथ देता है तब तक समाधानी मत रहो जब थकोगे , बुढे होने के बाद समाधानी रहो।
किंतु हम बिलकुल इसका उलटा करते है, जब कुछ कर दिखाने का समय होता है, हम समाधान की ढाल आगे कर के निष्क्रिय रहते है, और वृद्धावस्था में अपने साथियो के प्रगती को देख कर असमाधानी होकर खुद को कोसते रहते हे।
तो बहेतर यही है की युवावस्था में महत्वाकांक्षी रहो और वृद्धावस्था में समाधानी!
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Akshay Neve

(अगर आप सहमत हो, तो कृपया शेअर करे! धन्यवाद)



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