
जनपदध्वंस (Janpadudhvans) ©अक्षय प्रकाश नेवे. प्राचीन इतिहास का अध्ययन करते समय कुछ प्राचीन संकल्पना ऐसी होती है, जो आज ज्यादा प्रचलित नही किंतु आज के समय में भी लागू होती है। जैसे की एक संकल्पना है - जनपदध्वंस। जनपदध्वंस इस शब्द का विश्लेषण करें , तो वह होता है - जन + पद + उध्वंस। जनपद याने मनुष्य का समूह और उसका उध्वंस याने पतन। (Decline of humans settlements). जनपदध्वंस संकल्पना में यह विशद किया है के, जैसे जैसे जनसंख्या बढती जायेगी मनुष्य प्राणी अपने विनाश की दिशा में आगे बढता जाएगा। बढती जनसंख्या मानवजाती के पतन का कारण बन सकती है अपीतू बन चुकी है! वैसे देखा जाए तो हर एकक (unit) की एक मर्यादा होती है और उस मर्यादा के परे होने पर वह एकक अपने विनाश की तरफ मार्गक्रमण करने लगता है। अगर यही नियम हम जनपद को लगाते है , तो यह सरलतः यह आकलन होता है की हर जनपद की एक मर्यादा होती है, के वो कितने लोगो को स्थान दे सके, वह मर्यादा पार होने के बाद वह जनपद अपनी विनाश की और मार्गक्रमण करना शुरू कर देता है। जैसे की, मानो ए...