जनपदध्वंस
(Janpadudhvans)

©अक्षय प्रकाश नेवे.


    प्राचीन इतिहास का अध्ययन करते समय कुछ प्राचीन संकल्पना ऐसी होती है, जो आज ज्यादा प्रचलित नही किंतु आज के समय में भी लागू होती है। जैसे की एक संकल्पना है - जनपदध्वंस।
     जनपदध्वंस इस शब्द का विश्लेषण करें , तो वह होता है - जन + पद + उध्वंस। जनपद याने मनुष्य का समूह और उसका उध्वंस याने पतन। (Decline of humans settlements).
    जनपदध्वंस संकल्पना में यह विशद किया है के, जैसे जैसे जनसंख्या बढती जायेगी मनुष्य प्राणी अपने विनाश की दिशा में आगे बढता जाएगा। बढती जनसंख्या मानवजाती के पतन का कारण बन सकती है अपीतू बन चुकी है!
   वैसे देखा जाए तो हर एकक (unit) की एक मर्यादा होती है और उस मर्यादा के परे होने पर वह एकक अपने विनाश की तरफ मार्गक्रमण करने लगता है। अगर यही नियम हम जनपद को लगाते है , तो यह सरलतः यह आकलन होता है की हर जनपद की एक मर्यादा होती है, के वो कितने लोगो को स्थान दे सके, वह मर्यादा पार होने के बाद वह जनपद अपनी विनाश की और मार्गक्रमण करना शुरू कर देता है। जैसे की, मानो एक १० x १० फिट का एक कमरा है, जिसमे २ आदमी काफी सरलता से रह सकते है, किन्तु जब उस कमरे में २ आदमी और रहने लगे तो?... ? थोड़ी दिक्कते तो बढ़ेगी ही..
और वही संख्या और २ से बढ़ेगी तो? उस समय तो रहना मुश्किल हो जायेगा फिर वे ६ आदमी पूरी कोशिश करेंगे की कैसे इस कमरे में रहने वालों की संख्या पर अंकुश लगाया जाए और हो सके तो ये संख्या कम कैसे की जाए! बस बिलकुल इसी तरह एक जनपद में अपेक्षा से ज्यादा जनसँख्या बढ़ जाये तो ऐसा ही हाल होगा!
मनुष्य को एक सुव्यवस्थित जीवन जीने के लिए जितनी सुविधाएं एवं स्त्रोत आवश्यक है , बढ़ती जनसंख्या के कारण वह मिलने में दिक्कते तो आयेगी ही। हर कोई वह सुविधा प्राप्त करने की अभिलाषा रखता है , और इसी वजह से संघर्ष बढ़ता जाता है। और उसका अंत ही जनपदध्वंस कहलाता है। अभी देखिये ये जेरूसलम में क्या हो रहा है! इस्लाम, ख्रिश्चन और ज्यु धर्मियो के लिए सबसे पवित्र शहर है ये जेरूसलम किन्तु उसपर अधिकार करने के लिए कितना लहू बहा है हर धर्मियो का?
जनसँख्या जैसे बढ़ती जायेगी, हर कोई अपने आर्थिक स्वार्थ, सामाजिक प्रतिष्ठा, वैचारिक प्रभाव बढ़ाने हेतु हरसंभव प्रयास करेगा, लोगो से लोग, राज्योंसे राज्य, राष्ट्रों से राष्ट्र भिड़ेंगे और अंत में बस रह जायेगी बस राख, धूल, और बुझे हुए अंगारे!
(अगर सहमत हो तो कृपया , शेअर करें)

Comments

Popular posts from this blog

शिवाग्रज , शिवबंधु : संभाजीराजे.

मोहनजोदारो